ये आँख बड़ी अजीब चीज़ होती हैबिना शब्दों के सब कुछ कहती हैकुछ छुपाना इनकी आदत नहींगहरे से गहरे राज़,एक पल में बयाँ करती है आम तौर पर काले रंग की होती है आँखेमगर भावनाओं के कई रंग दिखाती है आँखे कभी माँ की ममता, तो कभी बहना का प्यारसजनी की आँखों में सोलह सिंगारकभी दोस्ती का वादा, तो कभी दुश्मनी की धारकभी नफ़रत की आँधी, तो कभी बदले की आग कभी मिलने की ख़ुशी, तो कभी जुदाई का गमकभी जीत का हो जश्न, तो कभी हार का मातमकभी डर का साया, तो कभी तनहाई की शाममदभरी आँखों से छलके कभी बेहोशी के जाम कभी जवानी का जोश, तो कभी मायूस बुड़ापननन्ही नन्ही आँखों से झाँके नन्हासा लड़खपनकभी बरसते शोले, तो कभी पलकों शीतल की छाँवआँख दिखाए रंग, जैसा मन में हो भाव दिखने में हो चाहे नाजुक सीमगर बड़ी ही ताकतवर होती है आँखेअगर साथ दिमाग का मिलेतो कहाँ से कहाँ पहुँचती है आँखें कल्पना के पंख लेकर ऊंचे आसमाँ पेउड़ान भरती है आँखेगहरे सागर में डूबकर अनमोल मोती भीढूंढ़ लेती है आँखेपत्थर में छुपे हीरे को भी पहचानती है आँखेंदिल में बसे अरमानों को भी समझती है आँखें वर्तमान तो क्या, इतिहास में भी झाँकती है आँखेआनेवाले भविष्य को भी देखती है आँखेहर मुश्किल को आसान बनाती है आँखेअंधे को भी सपने दिखाती है आँखे जब जुबाँ हो चुप तो बोलती है आँखेकुछ बोल ना पाए तो झरती है आँखेआंसुओं से भी दिल की बात कहती है आँखे इन आंसुओं के भी है कई अंदाज निरालेकहीं दुःखों के सागर, तो कहीं खुशियों के मेलेहर एक जज़बात दिल का, बयाँ करते है आंसुहर एक बोझ दिल का, हलका करते है आंसु दोस्तों, ज़रा सोचो,अगर ये आँखे ही ना होती, तो क्या होता ? दुनिया के सारे रंग काले के बराबर होतेपुरी जिंदगी एक आँख मिचौली बन जातीफिर, ना रंगों की होली, ना दीपों की दिवालीत्यौहार के दिन भी कटते खाली-खाली रातों के साए दिन पे भी छाए रहतेसारे के सारे अंधे बेचारे उजाले को तरसतेस्वयं सूरज के भाग्य में भी अँधेरा ही होताकब उगा, कब डुबा, कोई खबर ही ना रखता आशाओं के दीप ना जलतेउम्मीदों के फूल ना खिलतेप्रगति के मार्ग परकोई कदम ना आगे बढ़तेदुनिया वहीं की वहीं रह जातीगहरे अँधेरे में डूब के खो जाती इन कलाकारोंकी भी भला कोई क़ीमत क्या होतीजब उनको देखने-परखने वाली, कोई आँख ही ना होतीफिल्मों पे ‘राज’ करने वाला शोमन ना होताकॉमन मॅन को जगाने वाला लक्ष्मण ना होता विन्ची, रवी वर्मा कहीं के ना रहतेपेंटिंग्ज सारे उनके ख़ाक में मिलतेकागज़ को भी लफ्जों के मोती नसीब ना होतेना जाने कितने शायर भूखे मरते ए मधुबाला, तेरा हुस्न भी बेकार होताइन दो आँखों में गर प्राण ना होताअगर भगवान का दिया ये कॅमेरा (आँख) ना होतातो मनुष्य की इस तिसरी आँख (कॅमेरा) काकोई मतलब ही ना बनता मगर अफ़सोस !!इस के बावज़ूद भी मैं कहूँ,अगर ये आँखे ना होतीतो शायद, कुछ अच्छा ही होता काले-गोरे का भेद ना होतासारे झगड़ोंका मूल ही नष्ट होताउच्च-नीच का ख़ौफ़ ना होताकिसी को दिखावे का शौक़ ना होताधन-दौलत का नशा ना होतापैसे के पीछे कोई अंधा ना होता दहेज़-ज़ेवरात के लिए मासूमों की जान ना जातीहवस की आग में किसी निर्भया की बली ना चढ़तीरुपयों के लिए रूप का ब्यापार ना होताकिसी के चहरे पे झूठ का नकाब ना होता आदमी आँखों से नहीं, दिल की नजर से देखता,तन से नहीं, मन से प्यार करतातभी जाकर, अपनी अंतरात्मा को पहचान पाता इसी लिए कहता हूँ दोस्तों,कुदरत की ये देन है, चीज बड़ी अनमोल हैसौंदर्य का वरदान है, तुम्हारे व्यक्तित्व की पहचान हैमगर देनेवाले से, जिम्मेदारी का एक वादा भी हैनज़र अच्छी हो, सोच अच्छी होइसी में ही पुरे विश्व की भलाई है
Author: Swapneel Sathe
न घडलेली भेट
सन २०११ च्या जून महिन्यातील एक पावसाळी सकाळ. रविवारचा दिवस होता. पुण्याहून मुंबईला येणारी प्रगती एक्सप्रेस दादर स्टेशनात येऊन थांबली. मी, माझी पत्नी आणि मुलासह खाली उतरलो. तसं पाहिलं तर मुंबईला येण्याची ही काही माझी पहिलीच वेळ नव्हती. पण यावेळी मनात असणारी उत्सुकता (आणि थोडी अनिश्चिततेची चिंता) काही वेगळीच होती.