" Mutatkar Carnival - मेरा परिवार..मेरा आधार ( कार्ड ) "
एम पी इंटर कॉलेज, रामनगर, के प्रिंसिपॉल श्री संजीव शर्मा ने 15 अप्रैल को मुटाटकर परिवार के सम्मान समारोह में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि जहां आज परिवार के 4.5 सदस्यों का एक होना मुश्किल हो वहां परिवार के 45 सदस्य एकत्रित हो यह सुखद आश्चर्य है। आधार, आनंद, प्रेम और सुख इन बुनियादी जरूरतों को हर व्यक्ति तलाशता है और अपने परिवार, पड़ौसीओ और मित्रों में ढूंढता है। मित्रो को चुना जा सकता है और सुविधा, आवश्यकताओं के अनुरूप बदला जा सकता है, पड़ौसीओ का आपके पास कोई विकल्प नही। उन्हें झेलना या उनसे निभाना पड़ता है। परिवार आपका प्रारब्ध है और परीक्षा भी और उसका संरक्षण, सम्मान करने में एक अद्भुत ईश्वरीय संकेत है । इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए उन सभी गुणों, विशेषताओं की आवश्यकता है जो आपको जीवन मे सुखी, समाधानी बनाते है।
यह विषय व्यापक है और डेल कार्नेगी की तरह How to Develop Families & Influence Relatives जैसी किताब लिखी जा सकती है।
प्रथम मुटाटकर कार्निवल के लिये रामनगर का चयन, जो कॉर्बेट नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार भी है, एक योग्य, समर्पक निर्णय था। मेरे दादाजी स्व. त्रिम्बक माधव मुटाटकर एक ड्राइंग मास्टर के रूप में काशीपुर के स्व. गोविंद वल्लभ पंत द्वारा संचालित विद्यालय में 1917 में आये थे। रामनगर के एम पी इंटर कॉलेज के प्रिंसिपाल होने तक का उनका सफर अनूठा और प्रेरणादायीं रहा। 1961 में रिटायर होने के बाद भी अध्यापन का कार्य उन्होंने जारी रखा। उनके कई विद्यार्थी आगे चलकर IAS/IFS आदि सेवाओ में उत्तीर्ण हुए। उम्र के 85 वर्ष तक वो यू.पी. बोर्ड के एग्जामिनर रहे। व्यक्ति जितने वर्ष जिया यह उसकी उम्र हो सकती है पर मृत्यु के बाद उसे कितने वर्षों तक याद किया जाता है वह उसका जीवन होता है। मुफ्त में जमीन मिलने के उस दौर में जमीन का एक टुकड़ा भी अपने नाम करने और उस पर इमारत खड़ी करने का ख्याल भी जिसे न आया हो शायद उन्ही का नाम लोग याद रखते हैं। यहाँ पर हमारे चंदू काका, स्व. सुलभा काकू और अमोल मुटाटकर की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने रामनगर निवासियो से रिश्ते बनाये रखे, वहाँ रहते समय भी उसके बाद भी। वाकई.. ये रिश्ता…क्या कहलाता है!
इस मुटाटकर मिलन समारोह का उदघाटन हमारे ज्येष्ठ चाचा श्री मनोहर मुटाटकर ने किया.। एक श्रेष्ठ कथा-कथानकार रहे चाचा ने अपने पिता, स्व.दामू काका का किस्सा सुनाकर परिवार के मूल्यों व मान्यताओं की याद आज की युवा पीढ़ी को दिलाई। अपनी कंपनी का इंटरेस्ट फ्री लोन जब उन्होंने कंपनी के दबाव में आकर लिया औऱ ये बात जब पिताजी को मालूम पड़ी तो क्या हुआ ? लोन की राशि का इस्तेमाल तो उन्होंने किया ही नही बल्कि उनके बचत खाते में रखी ऋण राशि पर जो ब्याज उन्हें मिला उसे भी उन्होंने ऋण राशि के साथ लौटाया। घटना छोटी है पर बड़ी अर्थपूर्ण है और दर्शाती है – प्रतिष्ठा, अनुशासन औऱ संस्कार। तीन भाई – गोपाल, दामोदर , त्रिम्बक, भतीजे विठ्ठल अनंत मुटाटकर और तीन जेठानियों राधा, शांता, शारदा, नौ पुत्रो, सात पुत्रियों, नौ पोतों, बारा पोतियों और उनके रिश्ते-नातो की कहानी है मुटाटकर परिवार ।
इन तीनो भाइयों को जोड़ने वाली मजबूत कड़ी का काम भतीजे विठ्ठल ( भैया ) ने किया जो स्वयं कुशाग्र बुद्घि वाले होनहार विद्यार्थी थे। एम्प्लाइज स्टेट इन्शुरन्स कॉरपोरेशन के कमीशनर/ Actuary रहे भैया दिल्ली में कार्यरत रहे और सही मानो में दिल्ली मुटाटकर परिवार की उन दिनों राजधानी रही। शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य आदि जैसी पारिवारिक समस्याओं का समाधान, निदान भैया के करौल बाग़, सफदरजंग, सर्वोदय एन्क्लेव, साकेत स्थित निवासों से हुआ। शीला मुटाटकर ने इन्ही यादों को तरोताजा किया। कल्पना और अनुराधा मुटाटकर ने कई संस्मरण सुनाये। संजय मुंडले ने अपने संभाषण में मुटाटकर परिवार की policies और principles का जिक्र किया जो किसी भी कामयाब कॉर्पोरेट के management priniciples हो सकते है। पॉजिटिविटी, हर चुनौती में अवसर देखने और कंफर्ट जोन से बाहर रहने, अच्छे स्टॉक में इनवेस्टेड रहने की लांग टर्म पॉलिसी, अपनी एक्सटेंडेड फैमिली को हर संभव सहायता करने का जज्बा। डॉ दिंडोरकर, सुजला काकू ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। नीता पेंढारकर ने अपनी सुमधुर आवाज में भजन की प्रस्तुति की। राजू पेंढारकर के मैसेज को नीता ने पढ़कर सुनाया। इसमें उन्होंने अतीत से जुड़ने के प्रयासों की सराहना की। अपने जो साथ छोड़ गये उनकी याद राजू जी ने कुछ ऐसे की
जब तेरी याद आयी दिल मेरा देर तक धड़कता रहा
कल तेरी चर्चा घर में हुई
घर मेरा देर तक महकता रहा
परिवार की युवा पीढ़ी के लिये यह कॉर्निवाल एक प्लेटफॉर्म था एक दूसरे से मिलने-जुलने और समझने का। इस परंपरा को आगे बढ़ाने की एक गंभीर चुनौती उनके सामने है। आत्म-निर्भरता के इस युग मे नये विकल्प खोजने होंगे रिश्ते बनाने, बढ़ाने, संवारने में। आज की पीढ़ी समर्थ भी है और साहसी भी।
अमोल मुटाटकर के अथक प्रयासों का ही नतीजा है- मुटाटकर कार्निवाल। उदय और संजय मुंडले का सहयोग भी सराहनीय !
अंत मे समस्त मुटाटकर परिवार को साधुवाद जिनसे मिलने कॉर्बेट नेशनल पार्क के टाइगर्स भी बेताब थे। यह इत्तेफाक नहीं।