हवाओं ने रुख बदलकर
खिजा को बहार बना दिया,
पतझड के दिनों में
पेडों को अंकुरित कर दिया….
बदले-बदले मिजाज कुदरत के
इंसानी हुकूक ने सब फना किया,
दरिया समंदर दरख्ते सहते रहे
कितनों ने फिर भी मना किया… !
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हवाओं ने रुख बदलकर
खिजा को बहार बना दिया,
पतझड के दिनों में
पेडों को अंकुरित कर दिया….
बदले-बदले मिजाज कुदरत के
इंसानी हुकूक ने सब फना किया,
दरिया समंदर दरख्ते सहते रहे
कितनों ने फिर भी मना किया… !