तब हर दिन बचे बाल..बाल
अब हर दिन गिरे बाल..बाल
तब हँसते तो बिखरते मोती
अब हँसने पर भी आँख सीकुडती
तब मिलते अमरुद..चाकलेट के मेले
अब बस उनके फ्लेवर के झमेले
तब एक अनजाना भी पेहचान देता
अब पेहचान बनाने को तरसता हर कोई
तब रेत में भी उछलते फाँदते
अब नरम गद्दों पर भी फुँक फुंक कर चलते
तब सब अपने थे..पराया न था कोई
अब अपने परायों के बीच फर्क ढुँढता हर कोई