कल बहोत पी मैने..
सुबह सुबह शायर मिले
जाम पे जाम होते रहें.. शायरी चढ़ती गयी
ठंड के माहोल मे घोल दिये रुबायी
लब्ज़ ब लब्ज़..तरोताजा़ होते रहे
हमसफर भी मिजा़ज़ ए शायर होते गये
ठहाकों पर ठहाके फुटतें रहे…पीते रहें
इश्के समंदर दिनभर साथ था हमारे
गहराईयाँ नापते चले…लब्जों के सहारे
लोग मिलते रहे…सीधेसे और चालाक भी
उम्मीद बनती बिगडती रही…लोगों से हमारी
शाम होते ही साथी और भी एक जुड गया
प्याला हाथ मे लेके चले शहर अपने हम
राह टेढी मिली..गर्दीश मे गुम हो गये
रात की गहराई लेके..पहुँच गए मंझिल पे हम