अपनी बीबी के लिये उसने रास्ते मे खडी उस औरतसे कुछ फूल खरीद लिये| जेब मे पचास रुपये का एक पुराना नोट था| कल से किसी ना किसीको देने की कोशिश कर रहा था | वो ही नोट निकाल कर उसने उस औरत के हाथ मे थमा दिया|
कल रातसे उस फुल वाली के बच्चे को बुखार था| डाॅक्टर के पास जाने के लिये पैसे नही थे| सामने दवाईकी दुकान से छोटसा बोतल लेकर उसे पिला दू, तो हमेशा कि तरह बुखार निकल जायेगा ऐसा सोच रही थी वो|
गोदके बच्चे का बुखार बढ रहा महसूस हो रहा था| ये सब फूल जितनी जल्दी बिक गये तो जाकर दवा ले लुंगी| बस और बीस रूपिये के फुल बिक गये तो जल्द ही इधरसे निकलूंगी| उसने चुपचाप वो नोट ले लिया| नसीबसे और भी कोई आ गया|
बचे हुए फूलो की किमत ३० रुपयेसे कम नही थी, फिरभी बीस मे दे दिये उसने| हात मे नोट लिये दवाई के दुकान मे पहुंची|
वो भी अपनी नन्ही परी के लिये बच्चो का खास साबून लेने उसी दुकान मे जा रहा था, तब वो औरत हाथ मे फटे पुराने नोट लिये दुकानसे बाहर निकल रही थी|
दुकान मे काम करनेवाले एक दुसरे से बात कर रहे थे, ” कैसे दे दवाई इन फटी पुरानी नोट के बदले? लोग भी ना जाने कैसे इनके हाथ इतना फटा पुराना नोट थमा दे देते है? “
३ साबुन का एक पॅक खरीदकर वो बाहर निकला | देखा तो सिग्नल पर वो औरत अपने रोते हुए बच्चे शांत कर रही थी और “अपनी आखोंके अंगार को अपनेही आंसूसे बुझानेकी कोशिश कर रही थी|
उस औरत के आसूंकी बाढ मे उसने अपने अहंकार को बहते देख वो वही पर सुन्न रह गया|
रुपिया छोडो, एक नोट का मोलभी हर एक के लिये अलग – अलग ही होता है|